आज दिनांक 15 अप्रैल 20 23 को साकार जागृति प्रवाह समिति, लखनऊ लिटरेरी क्लब, आरजीएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी, कृष्ण प्रताप विद्या बिंदु लोकहित न्यास, टैलेंट हट फाउंडेशन , शिव सिंह सरोज स्मारक समिति, अथर्व इंडिया अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रसमंच योजना के अंतर्गत डॉक्टर अंजली अस्थाना द्वारा लिखित तथा प्रोफेसर ज्योति काला द्वारा निर्देशित नाटक डिजिटल डेथ का मंचन किया गया। नाटक बीएसएनवी पीजी कॉलेज के छात्रों द्वारा अभिनीत हुआ। नाटक में अत्यंत संवेदनशील ढंग से सोशल नेटवर्किंग साइट पर बच्चों की अश्लील व वल्गर कंटेंट में अभिरुचि और अपनी जिम्मेदारियों से भागना तथा नैतिक मूल्य का हनन के साथ-साथ बच्चे किस प्रकार आत्महत्या की ओर प्रेरित हो रहे हैं यह दिखाया गया। नाटक के साथ-साथ सोशल नेटवर्किंग साइट पर अनचाहे ही आने वाले अश्लील कंटेंट और मोबाइल तथा अन्य गैजेट की गलत लतो का शिकार जिस प्रकार किशोर पीढ़ी हो रही है उसे ध्यान में रखते हुए एक राष्ट्रीय संगोष्ठी संस्कृति और सोशल मीडिया विषय पर आयोजित की गई। संगोष्ठी में स्वागत वक्तव्य डॉक्टर करुणा पांडे द्वारा किया गया। प्रोफेसर ज्योति काला ने विषय प्रवर्तन किया।सुश्री अंकिता एवं डॉक्टर मनीषी त्रिवेदी ने सर्वे रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें सोशल नेटवर्किंग साइट पर इस प्रकार के कंटेंट को किस प्रकार देखा जा रहा है और किस प्रकार किशोर पीढ़ी अपना कीमती समय बर्बाद कर रही है स्पष्ट हुआ। अधिवक्ता शरद मिश्र सिंधु द्वारा विषय के संदर्भ में कानूनी स्थितिया क्या है एवं इस प्रकार के कंटेंट को प्रमोट करने पर सजा के क्या-क्या प्रावधान है विस्तार से बताया। अधिवक्ता एवं समाजसेवी वी बी पांडे ने कहा समाज माता पिता भाई बहन मामा फूफा आदि से बनता है जबकि सोसाइटी साथ रहने वालों का झुंड मात्र है। झुंड एक दूसरे की देखभाल मुश्किल है जबकि समाज देखभाल पर ही टिका है। वर्तमान में विलंब से विवाह एक बहुत बड़ा कारण है जिससे इस प्रकार के कंटेंट को बढ़ावा मिल रहा है। सुश्री स्वाति शर्मा बताया की बचपन से ही आज किस प्रकार हम बच्चे के हाथ में गजट देकर अपनी जिम्मेदारियों को बचा लिया जाता है वह बाद में कितना घातक रूप लेकर सामने आता है हम सब देख रहे हैं। मीडिया देखी जा रही सामग्री से बच्चे में वर्चुअल ऑटिज्म की स्थिति पैदा होती है वह आज इंदौर ही क्रिकेट कैरम जिसे खेल खेलता है जो उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। यह नकली दुनिया के खेल उसे नकली बनाने की ओर ले जाएंगे। दूरदर्शन से जुड़ी सुश्री दुर्गा शर्मा ने कहा की सोशल मीडिया पर सब कुछ बुरा ही नहीं है। पूरे विश्व को जुड़ने के लिए एक खिड़की खुली है हमें इस खिड़की का सकारात्मक उपयोग करना चाहिए। वरिष्ठ मनोचिकित्सक प्रोफेसर अभिषेक पाठक ने विस्तार से बताया कि यह बच्चों मे जो एडिक्शन पैदा हो रहा है वह न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। आज 11_12 वर्ष तक के बच्चे सेक्सुअल बिहेवियर इस कंटेंट की गिरफ्त में आकर दिखा रहे हैं। इसका दुष्प्रभाव यही तक नहीं है नींद बाधित होना, रेस में पिछड़ जाने का भय अनरियल कंटेंट के कारण असंतृप्ती जैसी स्थितियों का भी सामना करना पड़ रहा है। आज एक छत के नीचे रहते जरूर हैं फिर भी मोबाइल से जुड़े होने के कारण आभासी समीप ता अनुभव करते हुए हम दूर दूर हैं। आरजीएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी के डायरेक्टर डॉ भरत मिश्र ने समाधान के रूप में जो तथ्य कहे उनमें प्रमुख हैं कि हम अनचाहे बच्चे को अपने बीच ना लाएं जब हम बच्चे के लिए उसके मां-बाप बनने को पूरी तरह से तैयार हो तभी बच्चे का जन्म हो। जब बच्चा हमारे बीच हो तो उसके साथ हम अपना भावनात्मक संबंध स्थापित रखें जिससे बच्चा भटकने से बच जाए। उसे बड़ी बातें बताएं सिखाएं और वरीयता क्रम बनाना बताएं जिससे वह सबसे महत्वपूर्ण बात को सबसे पहले चुन सके तथा इस प्रकार का महत्वहीन कंटेंट देखने से खुद को बचा पाए। संगोष्ठी की अध्यक्षता पदम श्री डॉ विद्या बिंदु सिंह ने की और अध्यक्षीय वक्तव्य में बताया कि हमें संयुक्त परिवार की अवधारणा पर वापस लौटना होगा सिर्फ यही विकल्प है जिससे हम अपनी भावी पीढ़ी को अनुचित दिशा में जाने से रोक सकते हैं। भारती सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी समाप्त हुई। संगोष्ठी का संचालन अंजली अस्थाना द्वारा किया गया।