संबद्धता-पत्रक
जुडने से पहले
आकलन बिन्दु
आप प्रवाह परिवार से जुड़ने जा रहे हैं, आपने सम्बद्धता पत्र पर हस्ताक्षर किया है, किन्तु क्या आपने इसकी गम्भीरता को भी सोचा है? हम किस ध्येय पूर्ति हेतु आगे बढ़े हैं?
नाकारात्मक एवं विध्वंसक मानसिकता हर काल में रही है। कभी कम कभी अधिक। निरन्तर उससे लड़ने एवं सकारात्मकता तथा सृजनात्मकता की संतुलित दिशा के प्रयास होते रहे हैं। वर्तमान काल संक्रमण का काल है। इस समय जैसी स्थितियाँ, जैसी मानसिकता हम बनाने में
सफल रहे। वह कुछ समय तक स्थायी रहेगी। यहाँ यह भी कहा जा सकता है कि दीर्घकालिक स्थायी सकारात्मक स्थितियों का सूत्रपात का यह सबसे उपयुक्त अवसर है।
हमारा ध्येय है स्वयं को समझते हुए, चेतन रखते हुए जीवन की चरम अनुभूति के साथ एक-एक पल को जीना। द्वन्द्व रहित जीना। और ऐसे ही जीवन के लिए जनमानस को प्ररित करना।
यह बात सूत्र रूप में है। हम जैसे-जैसे जागरुक होंगे इस सूत्र की व्यावकता से पतिचित होते चलेगें। साथ ही जीवन के प्रति स्वभाविक संवेदनशीलता का प्रस्फूटन होता चलेगा।
हमारा दायित्व बन जाता है कि विपरीत परिस्थितियों को दूर कर उनके प्रति प्रतिरोधक छमता का निर्माण करते हुए जीवन मूल्यों की स्थापना करें तथा उन्हें साकार करें ताकि वे मूल्य हमारे, सहज, स्वभाविक, नैसर्गिक जीवन की प्रेरणा बन सकें।
हमें इस बात का विषेष ध्यान रखना है हमारे द्वारा कोई भी ऐसा कार्य अथवा गतिविधि न हो जिसका किंचित भी नकारात्मक प्रभाव पड़े । हम जो भी करे उसके मजबूत तर्क हमारे पास हो या फिर हामारा कृत्य पूर्णतः निर्दोष, षिषुवत व नैसर्गिक हो। हम यदि कहीं वाद विवाद कर रहे हों, लड़ाई या मारपीट या कोई भी कृत्य, उसे पूरी सजगता के साथ करें, परिणामों पर पूर्णतः विचार करते हुए। चोरी करनी हो तो करें, झूठ बोलना हो तो बोलें, किन्तु जब आकलन हो तो स्पष्ट सिद्ध हो सके कि यह कृत्य आवष्यक था जनहित में अचेतन अवस्था में, बेहोषी में कोई भी कार्य नहीं होना चाहिए।
यद्यपि संस्था के उद्देश्य, संस्था के कार्य बहुत गुरुतर हैं किन्तु हमें इन्हें कार्य की तरह नहीं करना। इन्हें हम जीवन की स्वभाविक प्रक्रिया की भाँति सहज गति की तरह करें। ऐसा इसलिए क्योंकि कार्य के पश्चात् थकान होती है जबकि जीवन को अपने पूर्ण स्वरूप में जीकर ताजगी आती है उर्जा की निष्पति होती है। अस्तु हमें जीवन जीना है जिससे जीवन कही छूटने न पाए। उसकी पल पल अनुभूति होती रहे, जो हमारे चौथे पुरुषार्थ का व्यवहारिक स्परूप भी है।
संस्था इस बात के लिए वचनबद्ध है कि यह अनुभूति कभी भी किसी को भी नहीं होगी कि उसका जीवन व्यर्थ चला गया। अस्त भली-भाँति सोच समझ कर संस्था में अपने पाँव रखें, स्वागत है । सदस्यता शुल्क-निशुल्क